उत्तराखंड की धरती पर कई वीर योद्धाओं ने जन्म लिया, जिन्होंने अपनी वीरता और साहस से इस देवभूमि को गौरवान्वित किया। इनमें से एक अद्वितीय और महान नायक थे वीर भड़ गढू सुम्याल, जिनकी गाथाएं आज भी लोककथाओं में जीवित हैं। इनकी वीरता, प्रेम, त्याग और साहस की कहानियां गढ़वाल की लोकगाथाओं का हिस्सा बन चुकी हैं, जिन्हें ‘पवाड़े’ के रूप में गाया जाता है। पवाड़े उन गीतों को कहा जाता है जो किसी वीर योद्धा या देवता के अद्भुत पराक्रम को समर्पित होते हैं।
गढू सुम्याल का जन्म लगभग 1365 ई. में गढ़वाल राज्य की दक्षिण-पूर्वी सीमा पर स्थित “तल्ली खिमसारी हाट” में हुआ था। उनके पिता श्री ऊदी सुम्याल और माता श्रीमती कुंजावती देवी थीं। गढू का जन्म कुछ महीने बाद हुआ, जब उनके पिता का निधन हो गया था। गढू सुम्याल के चचेरे भाई रुदी सुम्याल, जो रुद्रपुर से थे, ऊदी सुम्याल से हमेशा ही बैर रखते थे। एक बार दोनों भाई माल की दून क्षेत्र में कर उगाही के लिए गए थे। वहाँ, उन्होंने वीरता दिखाते हुए कर उगाहे, लेकिन जब वे लौट रहे थे, तो रुदी सुम्याल ने धोखे से ऊदी सुम्याल की हत्या कर दी और यह झूठ फैलाया कि वे युद्ध में मारे गए।
ऊदी सुम्याल की मृत्यु के बाद, उनकी पत्नी कुंजावती देवी ने अपने अजन्मे बच्चे के लिए जीने का संकल्प लिया। इसी कठिन समय में गढू सुम्याल का जन्म हुआ। गढू सुम्याल का बचपन से ही साहस और वीरता का अंदाजा लगने लगा। एक दिन खेलते-खेलते गढू सुम्याल जंगल में गए और वहां उनका सामना एक बाघ से हुआ। गढू ने बाघ की दोनों भुजाओं को पकड़कर उसे अपने साथ घर लाकर अपनी मां के सामने पेश किया। यह घटना चारों ओर फैल गई, और लोग गढू की वीरता के बारे में बातें करने लगे।
गढू सुम्याल के जीवन में एक और कठिन घड़ी आई जब तल्ली खिमसारी हाट में अकाल पड़ा और उनकी दादी का निधन हो गया। उनके पास खाने के लिए कुछ नहीं था। इस स्थिति में उनकी मां ने उन्हें अपने ताऊ के पास जाकर छास लाने के लिए भेजा। जब गढू सुम्याल ताऊ के पास गए, तो उन्होंने उन्हें केवल एक गाय ही दी, जबकि वे लाखों रुपए लेकर गए थे। गढू सुम्याल ने गुस्से में आकर ताऊ की सारी भैंसों को चुराया और अपने घर ले आए।
यह घटना रुदी सुम्याल को और भी ज्यादा चिढ़ा गई, और उसने गढू सुम्याल को उकसाते हुए कहा कि उसे अपने पिता का बदला लेना चाहिए। गढू सुम्याल ने ताऊ के बहकावे में आकर उसे माल की दून जाने का निर्णय लिया। रास्ते में ताऊ ने गढू को एक घने जंगल में भेज दिया, लेकिन गढू सुम्याल अपनी सूझबूझ और कुलदेवी के आशीर्वाद से चौरसु दून पहुंचे और वहां शत्रुओं का नाश कर दिया।
ताऊ ने गढू सुम्याल की मृत्यु की अफवाह फैला दी और यह भी कहा कि वे शत्रुओं के हाथों मारे गए। ताऊ ने गढू की पत्नी सरु को अपने पाले में लाने के लिए उसे बहकाने का प्रयास किया, लेकिन सरु अपने पतिव्रता धर्म पर अडिग रही। ताऊ ने फिर सरु को धोखे से शौक जाति के रूपा शौक को बेच दिया। सरु ने शौकों को यह कहकर विश्वास में लिया कि उसने बारह वर्ष का व्रत लिया है, और इस प्रकार वह शौकों से बचने में सफल रही।
जब गढू सुम्याल को इस षड्यंत्र का पता चला, तो उन्होंने ताऊ और उनके परिवार से बदला लेने का संकल्प किया। गढू सुम्याल ने ताऊ को रात के समय अपने घर बुलाया और उसे और उसके परिवार को आग में झोंक दिया। इस घटना के बाद उनकी मां को शांति मिली और उन्होंने प्राण त्याग दिए।
गढू सुम्याल अपनी पत्नी सरु को खोजने के लिए निकले और लंबे समय तक भटकते रहे। एक बूढ़ी महिला से जानकारी मिलने पर, गढू ने सरु को शौकों के घर से मुक्त कराया। रास्ते में रूपा शौक ने गढू सुम्याल पर तलवार से हमला किया, लेकिन गढू ने उसे भी परास्त कर दिया। गढू सुम्याल का घाव गहरा था, लेकिन उनकी पत्नी सरु की समझदारी और महादेव के आशीर्वाद से वे ठीक हो गए।
दोनों प्रेमी, गढू सुम्याल और सरु, अंत में खुशी-खुशी घर लौटे। तल्ली खिमसारी हाट में गढू सुम्याल का राज्याभिषेक हुआ और उनके शासन में प्रजा खुशहाल और समृद्ध हो गई। गढू सुम्याल की वीरता और उनके साहस की गाथाएं आज भी गढ़वाल और उत्तराखंड के हर कोने में गाई जाती हैं। इस प्रकार गढू सुम्याल ने न केवल अपनी धरती और परिवार की रक्षा की, बल्कि अपने अद्वितीय साहस और संघर्ष से अपार सम्मान प्राप्त किया।
संस्कृति विभाग में उत्तराखंडी कलाकारों के छलके आंसू,सालों से अटका रखा मानदेय।







